सूचनाओं के संसार में
कुछ भीपकड़ में नहीं आ रहा है इधर घटनाओं को पकड़ नहीं पा रहा हैदिमाग़ हालांकि मिल रही हैंउनके घटने की सूचनाएं भरपूर दृश्यों को
कुछ भीपकड़ में नहीं आ रहा है इधर घटनाओं को पकड़ नहीं पा रहा हैदिमाग़ हालांकि मिल रही हैंउनके घटने की सूचनाएं भरपूर दृश्यों को
( ये पोस्ट अग्रज कवि कुमार अम्बुज के लिए बतौरे ख़ास … ) जब आदमी उम्रदराज़ हो जाता हैतो उसका जीवनमुक्त हो जाता है समय
आशुतोष दुबे की ये कविताएँ उनके संकलन “यकीन की आयतें” से ली गई हैं और इन्हें हमारे चित्रकार दोस्त श्री रविन्द्र व्यास ने अत्यन्त प्रीतिपूर्वक
मित्रो अगस्त के महीने में कुछ दिन के लिए अपने पहाड़ गया तो कई बरस बाद “हल” देखने और छूने का मौका मिला। मौसम नहीं
नामवर जी के भारतभूषण कविता पुरस्कार के निर्णायक होने की एक अप्रतिम खोज हैं 1987 में पुरस्कृत मेरे प्रिय अग्रज कवि देवीप्रसाद मिश्र। देवी भाई
कबाड़खाने से शुरू हुए येहूदा आमीखाई की कविताओं के क्रम को अनुनाद में भी जारी रख रहा हूं। आगे कुछ उनकी लम्बी `युद्ध श्रंखला´ से
बहुत काली थी रात हवाएं बहुत तेज़ बहुत कम चीज़ें थीं हमारे पासरोशनी बहुत थोड़ी-सीथोड़ी-सी कविताएँऔर होशउनसे भी थोड़ा हम किसी चक्रवात में फंसकरलौटे थेदेख
व्योमेश की कविताएं अपनी तरह से समकालीन कविता में एक नए युग की शुरूआत का विनम्र घोषणा-पत्र हैं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि
वह मुझे धरती की तरह लगता हैजिसे उठाएइतने सधे कदमों से चढ़ती-चली जाती हैं बांस के टट्टरों परकुछ सांवली और उदास औरतें उसमें क्या नहीं
ये छोटी सी कविता २००६ में आउटलुक में छपी थी और उस समय कुछ दोस्तों ने इसे पसंद भी किया था ! अब ये एक