
प्रयाग शुक्ल से शर्मिला बोहरा जालान का साक्षात्कार (प्रयाग शुक्ल जन्मदिन विशेष)
“हम छवियों के युग में रह रहे हैं। छवियों के युग में रहने के कारण कलाकृतियों को देखना आसान और मुश्किल
“हम छवियों के युग में रह रहे हैं। छवियों के युग में रहने के कारण कलाकृतियों को देखना आसान और मुश्किल
(1) खादी ने किया हिंदी का आग्रह यह बात उन दिनों की है जब मेरा हिंदी अनुभाग तीसरी मंजिल पर था।
मेधा- हिन्दी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं? कमलजीत – मेरी समझ से इस दौर
एक आँख कौंधती है (स्त्री केन्द्रित कविताएँ) । विनोद पदरज । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 150 ।
कितनी सारी बातें होती हैं कहने के लिए । कुछ-न-कुछ तो हमेशा सबके पास रहता ही है । ऐसा लगने से
कृष्ण कल्पित (१) केदारनाथ सिंह की अनुकृति करने की कोशिश में जितने युवा कवि नष्ट हुये उससे कुछ अधिक ही