बग़ावत पर उतरा ईश्वर – फ़रोग फ़रोख्जाद
चयन, अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र यदि मैं ईश्वर होती तो एक रात फरिश्तों को बुलाती और हुक्म देती कि गोल
चयन, अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र यदि मैं ईश्वर होती तो एक रात फरिश्तों को बुलाती और हुक्म देती कि गोल
हिसाब ब्लेड से पेंसिल छीलते में एक पूर्ण विराम भर कट सकती है उंगली लेकिन अश्लील होता बिल्कुल सफ़ेद काग़ज़ पर
मेरे प्रिय कवि गिरिराज किराडू की ये नई कविताएँ कई वजहों से महत्वपूर्ण हैं। पहली बात ये कि इनमें से पहली
तिन मोए (1933 -2007 )बर्मा(अब म्यांमार) के राष्ट्रकवि माने जाते हैं,हांलाकि सरकारी तौर पर उन्हें यह पदवी नहीं दी गयी। ऊपरी
ख़ुदा से सवाल मेरे ख़ुदा ! यह क्या वशीभूत कर लेता है हमें प्यार में ? क्या घटता है हमारे भीतर
(1943 में जन्मी निकी जियोवानी अफ्रीकी मूल की अमरीकी कवयित्री हैं, इनकी कविताओं में नस्लीय गौरव और प्रेम की झलक है।
1943 में जनमी विकी फीवर अंग्रेजी में लिखने वाली स्कॉट्लैंड की प्रमुख कवि हैं,जिन्हें स्त्री विषयक कविताओं के लिए जाना जाता
राजेश सकलानी अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उम्र के लिहाज से देखें तो कुमार अम्बुज, लाल्टू, एकांत श्रीवास्तव, कात्यायनी के समकालीन बैठेंगे।
मैं बेहद परेशान हूं इन दिनों पलट डाले आलमारी में सजे सारे शब्दकोश कितनी ही ग़ज़लों के नीचे दिये शब्दार्थ गूगल
खाना पकानानानी ने जाने से एक रोज़ पहले कहा – सच बात तो यह है कि मुझे कभी खाना पकाना नहीं