उस अलाव से कुछ बच ही निकलता है : मार्टिन एस्पादा
उस अलाव से कुछ बच ही निकलता है विक्टर और जोअन हारा के लिए I.क्योंकि हम कभी नहीं मरेंगे: जून 1969
उस अलाव से कुछ बच ही निकलता है विक्टर और जोअन हारा के लिए I.क्योंकि हम कभी नहीं मरेंगे: जून 1969
एक बढ़ई काम करते हुए कई चीज़ों पर ध्यान नहीं देता मसलन लकड़ी चीरने की धुन, उसे चिकना बनाते समय बुरादों
महाकुम्भहज़ारों हज़ार साल पुराना हिन्दू धर्म (?) ख़तरे में है बचाओ एक सौ आठ फीट लम्बी धर्म ध्वजाजो महज सहजता के
बेट्सी का क्या कहना है 1965 में हरिकेन बेट्सी ने बहामा और दक्षिण फ्लोरिडा से होकर लुइज़िआना तट पहुंचकर न्यू
(अग्रज राजेश जोशी को विनम्रता और विश्वास के साथ …..ये दाग़ दाग़ उजाला ये शबगज़ीदा सहर को याद करते हुए)इसी रात
प्रेमीगौरैये का वो जोड़ा हैजो समाज के रौशनदान मेंउस समय घोसला बनाना चाहते हैंजब हवा सबसे तेज बहती होऔर समाज को
काम क्या होता है बारिश में खड़े-खड़े इंतज़ार कर रहे हैं हम फोर्ड हाइलैंड पार्क की लम्बी कतार में लगे
यह चित्र कवि द्वारा सम्पादित-प्रकाशित लघु पत्रिका का है उपस्थित तो रहे हम हर समारोह में अजनबी मुस्कराहटों और अभेद्य चुप्पियों
मैं हूँ निदा बसीजी* की गोली मेरे दिल में फंसी रहने दो करो मेरे खून में सिजदा और चुप भी हो
अपनी सरस्वती की अंदरूनी ख़बर और उस पर कड़ी से कड़ी नज़र इस ज्ञान निर्भर युग में हरेक को रखनी चाहिए