कोंपलें नहीं फूट रहीं – डोगरी कवि ध्यान सिंह की कविताएं : अनुवाद एवं प्रस्तुति – कमल जीत चौधरी
डोगरी के कवि ध्यान सिंह की पंक्ति कोंपलें नहीं फूट रहीं , महज कविता की नहीं, सामाजिक जीवन और उसकी दशा-दिशा
डोगरी के कवि ध्यान सिंह की पंक्ति कोंपलें नहीं फूट रहीं , महज कविता की नहीं, सामाजिक जीवन और उसकी दशा-दिशा
गूगल इमेज से साभार उम्र में तीस के बाद वह एक अरसे से सोच रहा है, उम्र में
अनुष्का पाण्डेय की कविताएँ सीधे-सरल संसार के उतने ही सरल प्रश्नों से निकलती-उलझती कविताएं लगती हैं, किन्तु यह भी याद दिलाती
जोशना बैनर्जी आडवाणी की कविताएं कई कहे-अनकहे, सुने-अनसुने कथानकों को सिरजती हुई अपनी कहन के लिए एक अलग तरह का शिल्प
ऋतु डिमरी नौटियाल की कविताएं आज के मनुष्य-जीवन और जीवन-शैली में घटित हो रहे प्रसंगों और प्रश्नों को स्पर्श करते हुए
वरिष्ठ कवि मोहन कुमार डहेरिया नब्बे के दशक में प्रकाश में आयी कवि-पीढ़ी के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि हैं। इनकी कविताएं समय, राजनीति
वीरेन्द्र दुबे देश के जाने माने बालशिक्षा विशेषज्ञों में हैं। इस क्षेत्र में उनकी उम्र गुज़री है। मध्य प्रदेश से उत्तराखंड
एक पियानोवादक की मृत्यु दूसरे जब जंग छेड़ रहे थे अथवा कर रहे थे अनुनय अमनके
कविता लेखन पर निजी जीवन और अनुभवों का विशेष प्रभाव होता है, जब यही अनुभव लोक मानस से
अशोक कुमार की कविताओं में लोक का ठेठपन, उसकी पीड़ा, उसकी चुनौतियाँ, उसके निश्चल स्वप्न , समाज का खोखलापन और