अनिल कार्की की लम्बी कविता- नमक बोती औरतें
(अपनी इजा, कोजेड़ज्या, काकियों और अपनी भौजियों को जो जिन्दा है और उन आमाओं को जो पहाड़ जीते हुए शहीद हो गयीं – उनको जिन्होंने पहले पहल
(अपनी इजा, कोजेड़ज्या, काकियों और अपनी भौजियों को जो जिन्दा है और उन आमाओं को जो पहाड़ जीते हुए शहीद हो गयीं – उनको जिन्होंने पहले पहल
इधर कुछ समय से उत्तराखंड में तथाकथित विकास के प्रबल पक्षधर बनकर सामने आए मेरे बहुत प्रिय वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी के लिए सादर तस्वीर: मनोज भंडारी-अनिल कार्की
भास्कर उप्रेती छह बरस पहले मि㨜ला एक युवा कवि-पत्रकार, जिससे समय के साथ मि㨜त्रता गाढ़ी होती गई। मैंने उसमें बहुत भावुक-संवेदनशील इंसान पाया। लेकिन उसकी
फेसबुक पर काम करने का कोई ईनाम भी मिलेगा, कभी सोचा न था। पिछले दिनों अपनी पीढ़ी के कवियों को पढ़वाने के लिए बहुत टीस
अपने लिए तुम्हारे घर की तिमंजिली खिडकी से कूदती है और रोज भाग जाती है छिली कोहनियों और फूटे घुटनों वाली औरत ढूंढती है नीम का
मेरे प्रिय छात्र अनिल कार्की की वजह से मेरा ध्यान फेसबुक पर संदीप रावत की कविताओं की ओर गया। मैं उनके पिछले कुछ स्टेटस को
मृत्युजंय बहुत अलग-अलग शिल्पों में कविता सम्भव करने वाले अद्भुत युवा कवि हैं। वे भरपूर राजनीतिक हैं, उनकी कविता के उद्देश्य राजनीतिक हैं, जो दिनों
विस्थापन और ‘आत्म’बोध की दूसरी कथा अपनों में नहीं रह पाने का गीत उन्होंने मुझे इतना सताया कि मैं उनकी दुनिया से रेंगता आया मैंने
केशव तिवारी मेरे बहुत प्रिय कवि हैं, जिनकी कविता के महत्व पर बातचीत मुझे हमेशा हमारी आज की कविता के हित में बहुत ज़रूरी लगती
अनुनाद पर निरन्तर काम करते रहने का सुफल कभी-कभी यूं भी मिलता है जैसे मेरे प्रिय कविमित्र आशुतोष दुबे ने अपनी छह कविताएं अभी अचानक