अनुनाद

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अब वे प्रेम के मकबरे बन चुकी हैं/स्‍वप्‍निल श्रीवास्‍तव  की कविताऍं 

   अगर      अगर भोजन करते हुए तुम्हें  इस बात की शर्म आए कि दुनिया में  करोड़ों लोग भूखे हैं  तो समझ लो कि तुम्हारे भीतर 

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एक देश बारह दुनिया’ रिपोर्ताज के बहाने विकासात्‍मक विरोधाभास पर एक निगाह/ दीक्षा मेहरा

पुस्‍तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्‍य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्‍य संस्‍कृति के लगातार हो

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 रधुली/अंजलि नैलवाल

  बाईं तरफ करवट ली हुई, बायां हाथ सिरहाने-सा रखा हुआ, और घुटने पेट तक मुड़े हुए। शरीर अकड़ चुका था। उसे ऐसे ही उठा

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सलगादो मारंय्यों की कविताएँ/अनुवाद एवं प्रस्‍तुति : शुभा द्विवेदी

  1    मैं दुल्की चाल से चलते हुए घर पहुँचता हूँघंटों के उपरांत मेरे अतीत के बियाबान के एकमात्र आश्रय स्थल पर मैं लौटता हूँ पगडंडियों

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चार्ल्‍स बुकोवस्‍की की कविताएं/ अनुवाद एवं प्रस्‍तुति – योगेश ध्‍यानी             

        Bluebird (नीला पक्षी)    मेरे दिल में एक नीला पक्षी है जो बाहर निकलना चाहता है किन्तु मैं उसके लिए बहुत कठोर हूँ मैं

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 फिलीस्‍तीनी युवा कवि हिंद जूडा की कविता/अनुवाद एवं प्रस्‍तुति : यादवेन्‍द्र

       युद्ध के दिनों में कवि होने का क्‍या मतलब होता है                                       युद्व के दिनों में कवि होने का 

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जैसे नींद सुनती है सपनों को जैसे एकांत सुनता है अकेलापन/ऋतु डिमरी नौटियाल  की कविताएं 

    सिर्फ़ एक शब्‍द नहीं, कोई शब्‍द      आसमान में जब आते हैं बादल  कोरे कागज में जैसे आ जाता है शब्द  शब्द, मुखपृष्ठ हो जाता

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अभी फिलहाल वे पर्वतीय जीवन की दुश्वारियों पर बात कर रहे हैं / भूपेन्‍द्र बिष्ट की कविताएं

   राज़ हो कितना गहरा    प्रेम में प्रतीक्षा से पाला पड़ता रहता है प्रेम के साथ एक प्रकाश भी नत्थी होता है अपने किस्म का यूं

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