आलोचना / समीक्षा
‘कितनी कम जगहें हैं’ में कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है/समीना खान
रचनाकारों की दुनिया में अमूमन एक वर्ग ऐसा होता है जो किसी रचनाकार के पहले संग्रह को उसके लेखन के शैशवकाल से जोड़ता है।मगर सीमा
रचनाकारों की दुनिया में अमूमन एक वर्ग ऐसा होता है जो किसी रचनाकार के पहले संग्रह को उसके लेखन के शैशवकाल से जोड़ता है।मगर सीमा
मैं सिराज-ए-दिल जौनपुर (SEDJ) की इस समीक्षा की शुरुआत दो स्वीकारोक्तियों के साथ कर रहा हूँ। पहली यह कि मैंने इसे पढ़ने के लिए नहीं
कितनी सारी बातें होती हैं कहने के लिए । कुछ-न-कुछ तो हमेशा सबके पास रहता ही है । ऐसा लगने से हो कुछ नहीं जाता,
कृष्ण कल्पित (१) केदारनाथ सिंह की अनुकृति करने की कोशिश में जितने युवा कवि नष्ट हुये उससे कुछ अधिक ही विष्णु खरे की कविता
इस बार तो कंग्डाली भाम देखने जाना ही है आखिर इतनी बातें जो सुनी हैं इसके बारे में और फिर 12 वर्षों में भी