रोना – हरि मृदुल की एक कविता
हेमंत स्मृति सम्मान तथा महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित युवा कवि हरि मृदुल की यह कविता संवाद
हेमंत स्मृति सम्मान तथा महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित युवा कवि हरि मृदुल की यह कविता संवाद
मेरी कविता ” मेरे समय में रोना” को पढ़ कर बड़े भाई अनूप सेठी जी ने अपनी यह कविता मेल से
यह कविता प्रतिलिपि में प्रकाशित हुई है तथा पिकासो की यह विख्यात पेंटिंग यहाँ से साभार ! एक बच्चा सड़क पर
आओ, पर्चे बांटेंआओ, पर्चे बांटेंउन कविताओं केजिन्हें न जाने कब से हमने नहीं लिखाउन सभी ख़तरनाक कविताओं केपर्चे बांटेंजिनमें हैं सभी
यह कविता पिछले दिनों प्रतिलिपि में यहाँ छपी है। एक क़स्बे मेंबिग बाज़ार की भव्यतम उपस्थिति के बावजूद वह अब तक
दीपावली के अगले दिन और हिंदी में मचे समकालीन हाहाकार के बीच मैं आपको हमारे समय के एक समर्थ युवा कवि
बोधिसत्व समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। कविता में अपनी शुरूआत उन्होंने आलोचना में कुछ बेहद प्रभावशाली कविताओं
यह कविता प्रतिलिपि से – गिरिराज किराडू के प्रति आभार के साथ। अनुवादक – तरुण भारतीय आर के नारायन मर गए
वह सैंडविच वह सैंडविच जो तुमने विदा होते समय दी थी ट्रेन में रात साढ़े नौ बजे मेरे इसरार के बावजूद
नवरात्र के अनुष्ठानों के बीच माँ की महिमा के शोरोगुल में स्त्री को घर और बाहर, कदम-कदम पर अपमानित करने का