मुसलमान – देवीप्रसाद मिश्र
कल एक युवतर कवि से देवीप्रसाद मिश्र का ज़िक्र चला तो मुझे ये पोस्ट याद आई। रमज़ान के पवित्र महीने में ये भारतीय आत्मावलोकन एक
कल एक युवतर कवि से देवीप्रसाद मिश्र का ज़िक्र चला तो मुझे ये पोस्ट याद आई। रमज़ान के पवित्र महीने में ये भारतीय आत्मावलोकन एक
दहलीज़-७ के ‘फॉलो-थ्रू’ में व्योमेश शुक्ल की कविता का ज़िक्र हुआ था. यह पोस्ट उसी ‘फॉलो-थ्रू’ का ‘फॉलो-थ्रू’ है. लेकिन यानी इसलिए (क्योंकि यह एक
चयन तथा प्रस्तुति : पंकज चतुर्वेदी तस्वीर यहाँ से साभार ‘कला क्या है’ कितना दुःख वह शरीर जज़्ब कर सकता है ?वह शरीर जिसके भीतर
आज महमूद दरवेश की पहली बरसी पर उन्हें याद करते हुए प्रस्तुत है प्रसिद्ध ब्रिटिश कला समीक्षक-लेखक जॉन बर्जर का यह आलेख. मूल अंग्रेज़ी आलेख
तस्वीर यहाँ से साभार ‘कवि’क़लम अपनी साध ,और मन की बात बिलकुल ठीक कह एकाध . यह कि तेरी-भर न हो तो कह ,और बहते
इस पोस्ट पर आ रही टिप्पणियों को देखते हुए इसकी तारीख आगे बढ़ा दी गई है। सबसे यही प्रार्थना है कि तनिक संयमित रहते हुए
चयन एवं प्रस्तुति : पंकज चतुर्वेदी कविता , युग की नब्ज़ धरो कविता , युग की नब्ज़ धरो अफ़रीका , लातिन अमेरिकाउत्पीड़ित हर अंग एशियाआदमखोरों
वैसे तो ये दोनों कविताएँ अच्छी हैं लेकिन परंपरा के हाथ भी पीठ पर हों और कवि का अंदाज़ नव्यतम हो, इसका एक दुर्लभ उदाहरण
तुम्हारे पंजे देखकरडरते हैं बुरे आदमी तुम्हारा सौष्ठव देखकरखुश होते हैं अच्छे आदमी यही मैं चाहूँगा सुननाअपनी कविता के बारे में .( 1941-47 )( अनुवाद
एक गाँधी अध्ययन केन्द्र के सेमिनार का निमंत्रण मिलने पर अचानक निराला की यह कविता याद आने लगी है ………..इसके लगाने के लिए फोटो की