बतकही ……2
व्योमेश शुक्ल की यह प्रश्नोत्तरी सापेक्ष के आलोचना महाविशेषांक से – दूसरी तथा अन्तिम किस्त आपकी नज़र में समकालीन लेखन की बुनियादी पहचान क्या हो
व्योमेश शुक्ल की यह प्रश्नोत्तरी सापेक्ष के आलोचना महाविशेषांक से – दूसरी तथा अन्तिम किस्त आपकी नज़र में समकालीन लेखन की बुनियादी पहचान क्या हो
व्योमेश शुक्ल की यह प्रश्नोत्तरी सापेक्ष के आलोचना महाविशेषांक से – पहली किस्त अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए। आलोचना में रुचि क्यों और कैसे हुई?
दिन की सबसे ज़्यादा हलचल वाली जगहें हीसबसे ज़्यादा खामोश हैं अब चौराहे पर अलाव जलायेपान की दुकान के बन्द होते समय नियम से सुरक्षा
स्मृति में रहना स्मृति में रहना नींद में रहना हुआ जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी याद
( ऊपर कवि नीचे अनुवादक ) नए साल की क़समें क़सम खाता हूं दारू और सिगरेट नहीं छोड़ूंगा क़सम खाता हूं जिनसे मैं नफ़रत करता
आज से 74 वर्ष पूर्व तेहरान में एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी फ़रोग इरानी स्त्रीवादी कविता की अगवा मानी जाती हैं। हालांकि वे महज 32
“जिन कवियों की बदौलत आज की हिंदी कविता का संसार नया और बदला-बदला लग रहा है, उनमें नरेश चंद्रकर अग्रणी हैं” – वरिष्ठ कवि अरुण
(…..अभी मैंने तुषार के कविता संकलन से सम्बंधित पोस्ट लगाई थी। आज मेल में गीत, अनुराग, गिरिराज, व्योमेश आदि दोस्तों को सम्मिलित रूप से भेजी
अनुनाद पर अभी आपने समकालीन कविता को लेकर पंकज का एक लम्बा सैद्धान्तिक लेख पढ़ा है। अपने समय और पूर्वस्थापित सिद्धान्तों की गहन छानबीन करते
(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार) कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए मगध को