फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 2
फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये दूसरी किस्त ………चांद उगता है जब चांद उगता हैघंटियां मंद पड़कर ग़ायब हो जाती
फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये दूसरी किस्त ………चांद उगता है जब चांद उगता हैघंटियां मंद पड़कर ग़ायब हो जाती
ये सभी अनुवाद आलोचना के अंक जनवरी-मार्च 1987 से साभार। इन पन्द्रह कविताओं को श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुत करने का इरादा है और यह उम्मीद भी कि
कुछ दिन यात्रा में बीते और अब अपने पिता के शहर पिपरिया में हूं ! रास्ते में भोपाल पड़ा तो दुष्यन्त याद आए – याद
यादवेन्द्र जी के नाम और काम से अब हिन्दी जगत खूब परिचित है। दुनिया भर की कविता और साहित्य के बीहड़ में भटकना उनका प्रिय
नए दौर के कवियों में आपने पहले व्योमेश, तुषार और गिरिराज किराडू को अनुनाद में पढ़ा है। गीत का बहुत ज़रूरी नाम छूट रहा था
शोक का एक दिन पूरा हुआ और मैं सिलसिले को वहीँ से उठा रहा हूँ जहाँ से ये टूटा था – यानी अशोक पांडे से
पंकज चतुर्वेदी की कविताएं _ इतना ही कहूंगा कि सहजता प्राण है इनका ! इच्छा मैंने तुम्हें देखा और उसी क्षण तुमसे बातें करने की
(हमारे समय में चेतना की धार को कुंद करने वाले शब्दों को उसके सही और वास्तविक मायनों में व्याख्यायित करने वाले प्रख्यात पत्रकार जान पिल्गर
अनुवादक की बातकोरियाई कवि कू-संग की कविताएँ पहली बार मेरे दोस्त अशोक पांडे को इंटरनेट पर उसकी लगातार यात्राओं के दौरान मिलीं। उसे वो पसन्द
युवा कवि गिरिराज किराडू प्रतिलिपि नाम की एक पत्रिका निकलते हैं , जिसके प्रिंटेड रूप से मै परिचित नहीं पर नेट पर हर कोई इस