यादवेन्द्र की कविता – कुहासा
एक सुखद आश्चर्य की तरह आज याद्वेन्द्र जी का मेल मिला और साथ मे यह कविता..अनुनाद के पाठक ज़रूर इसे पसन्द करेंगे… ____________________________________________ *** शिरीष,
एक सुखद आश्चर्य की तरह आज याद्वेन्द्र जी का मेल मिला और साथ मे यह कविता..अनुनाद के पाठक ज़रूर इसे पसन्द करेंगे… ____________________________________________ *** शिरीष,
प्रस्तुति – यादवेन्द्र पूरी कविता और इस पर बहस के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें … द पब्लिक एजेंडा के नवम्बर 2010 में प्रकाशित साहित्य विशेषांक में
विज्ञान के दरवाज़े पर कविता की दस्तक स्वर्गीय रघुवीर सहाय ने आज से करीब बीस साल पहले रिक्शे को केंद्र में रख कर एक कविता लिखी थी साईकिल
रीसम हेले अफ़्रीकी देश इरीट्रिया के सबसे लोकप्रिय कवि हैं — उनकी लोकप्रियता कविताओं की विषय वस्तु और लोक संस्कारों में रची बसी शैली के
पिछले अक्तूबर में चीन के कुछ इलाकों में तिब्बती भाषा के बोलने लिखने और पढ़ाये जाने पर जब सरकारी पाबन्दी लगा दी गयी तो नौजवानों
मेरे विभाग की अत्यन्त वरिष्ठ सहयोगी प्रोफेसर उमा भट्ट की अगुआई में ‘उत्तरा महिला पत्रिका’ काफी सालों से निकल रही है। उसका हर अंक संग्रहणीय
बिहार के बक्सर में १९७७ में जन्मे विमलेश त्रिपाठी को हाल ही में 2010 का युवा ज्ञान पीठ पुरुस्कार मिला है. उनकी कवितायेँ, कहानियां, समीक्षायें देश की लगभग
कीमोथेरेपी*मेरा शरीर एक देश हैसागर से अम्बर तक, पानी से पृथ्वी तकअनुभव जठराग्नि के खेत में झुकी हुई गेहूं की बाली मेरे हाथ, मेरा दिल,
क़ालीन गर्व की तरह होता है इसका बिछा होना छुप जाती है बहुत सारी गंदगी इसके नीचे आने वाले को दिखती है सिर्फ आपकी संपन्नता
अभी कई दिनों बाद आलोक जी का फोन आया। पिछली कई बातचीतों में मैं उन्हें छूटी हुई कविता की दुहाई दिया करता था। आज उन्होंने