अनुनाद

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पारदर्शी दिन बदल रहे हैं शाम में – जार्ज हेइम

अनुनाद पर मेरी पहली पोस्ट के रूप में प्रस्तुत है जर्मन अभिव्यंजनावादी कवि जार्ज हेइम (३० अक्तूबर १८८७ – १६ जनवरी १९१२) की एक कविता……..अनुवाद

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बाबा नागार्जुन की कविता …..

युवा आलोचक प्रियम अंकित अनुनाद के सहलेखक हैं पर इंटरनेट की कुछ बुनियादी परेशानियों के कारण अपनी पहली पोस्ट नहीं लगा पा रहे थे –

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एक गड़बड़ कविता ……..

दोस्तो / पाठको ! ये एक पुरानी कविता है, जिसे अपनी उलझनों के कारण एक पत्रिका में मैंने छपते छपते रोक लिया था। कविता कई

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वो कई दूसरे जो मैं हुआ करते थेः मेरिटोक्रेसी पर एक विलाप – गिरिराज किराडू

1साहित्य की जिस एक चीज़ ने मुझे मेरे लड़कपन में सबसे ज्यादा आकर्षित किया था, जिस एक चीज़ से सबसे ज्यादा राहत मिलती थी वो

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सीमा यारी की कुछ और कवितायें …अनुवाद एवं प्रस्तुति: यादवेन्द्र

सीमा यारी की एक प्रेमकविता यादवेन्द्र जी पहले अनुनाद पर लगा चुके हैं। आज प्रस्तुत हैं कुछ और कविताएं। अनुवाद यादवेन्द्र जी का ही है।

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कपिल देव की एक कविता

कपिल देव हिन्दी के सुपरिचित आलोचक-समीक्षक हैं। उन्होंने हमें ये कविता भेजी है, जिसके बारे में उनका कहना है कि ये कहीं भी छपने वाली

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दहलीज़ १: ‘बेर्टोल्ट ब्रेख्त की एक कविता-‘निर्णय के बारे में’: अनुवाद – नीलाभ अश्क

( कलात्मक सृजन को किस तरह उत्कृष्ट, सार्थक और प्रासंगिक बनाया जा सकता है ; इस सन्दर्भ में यह एक बेमिसाल कविता है. इसके अलावा

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