अनुनाद

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कहानी

भैंस का कट्या – विद्यासागर नौटियाल /अनुवाद : हिमांशु विश्‍वकर्मा

पौ फूटिन लागि रै छि। लम्बी-काली रातक आन्यर गर्भ भटि एक हसीन-स्वाणी रात ब्यागे छि। सुरजाक घावाड् काल है पछिल छोड़ भैर अपुण पूरी रफ़्तार में दौड़ान

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समाज और संस्कृति

कमज़ोर पड़ती पहाड़ी लोकगीतों और बोलियों की थाती – योगेश ध्‍यानी

  आदमी भले ही खाली हाथ हो उसकी भाषा हमेशा उसके साथ होती है। आज से कई साल पहले जब हमारे बड़े-बुजुर्ग, पिता या दादा

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समाज और संस्कृति

जांठि को घुङुर / दिवा भट्ट

जांठि को घुङुर,  कै थें कूनूं  दुखि-सुखि, को दिलो हुंङुर। (लाठी का घुंघरु (बजता है)   मैं किससे कहूं अपने सुख-दु:ख, कौन देगा हुंङुर)। यह कुमाउनी

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समाज और संस्कृति

भाषा बुलाण-चुलाण में ऐ जाली त बचि रौलि / नवीन जोशी

अछ्यान मी कैं बड़ै सोच पड़ि रूनान। पैली ले कभतै सोचनै छ्युं कि हमरि बोलि क्यै नटी उंणै। हमि आपणि दुदबोलि कैं क्यै भुलण लागि

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समाज और संस्कृति

फसक / ज्ञान पंत

  फसक …..               हमा्र पहाड़ में एक फसक भै और जो मस्तु फसक मारौं, उ फसकी भ्यो ।

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कहानी

ब्राह्मणी – शंभु राणा / अनुवाद : हिमांशु विश्‍वकर्मा

दुपहरीमै हाड़ गलूनी वालि घाम में उ हिटनमै छि। पाणी तीसलै गालण सुख गिछि। पसीणलै उ पुररी नै गिछि। पसीण पोछान-पोछान उईक धोतिक पाल लै

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कविता

राजेश जोशी, महेश पुनेठा और प्रदीप सैनी की कविताओं का अनुवाद / हर्ष काफर

गुरूत्‍वाकर्षण न्यूटन जेब में रख लो अपना गुरूत्वाकर्षण का नियमधरती का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है । अब तो इस गोल-मटोल और ढलुआ पृथ्वी परकिसी

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कविता

मथुरादत्‍त मठपाल की कविताओं का अनुवाद / कृष्‍ण चन्‍द्र मिश्रा

आङ्-आङ् चिचैल है गो ! आङ्-आङ् चिचैल है गो ! हिकौ-हिकौ कुकैल है गो । मुखां-मुखां म्वडैन फोकी गे । पौन-पाणी सैद विखेल है गो

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