हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा
(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार) कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न
(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार) कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न
वरवर राव विख्यात तेलगू कवि हैं। उनका संकलन हिंदी में भी उपलब्ध है। वसन्त के क्रम को आगे बढ़ाती हुई उनकी
सिद्धेश्वर सिंह कविता के एक खामोश और संकोची किंतु अत्यन्त समर्थ कार्यकर्ता हैं। अपनी कविताओं के जिक्र को वे हमेशा टालते
अरुण आदित्य 1965 में प्रतापगढ़ में जन्म हुआ़। कविता-संग्रह ‘रोज ही होता था यह सब’ 1995 में प्रकाशित। इसी संग्रह के
नीचे तस्वीर में है भोपाल की विख्यात ताजुल मस्जिद यह एक पुरानी स्मृति है। इसे 2005 के शुरू में रायपुर से
लाल्टू को मैं उनके पहले संग्रह `एक झील थी बर्फ़ की´ से जानता हूं। मुझे वे कविताएं अच्छी लगीं और इधर
फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये चौथी और अन्तिम किस्त ……… इन सारी कविताओं/गीतों के अनुवादक
फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये तीसरी किस्त ……… नारंगी के सूखे पेड़ का गीत लकड़हारेमेरी
फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये दूसरी किस्त ………चांद उगता है जब चांद उगता हैघंटियां मंद
ये सभी अनुवाद आलोचना के अंक जनवरी-मार्च 1987 से साभार। इन पन्द्रह कविताओं को श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुत करने का इरादा है और